कहीं भी जायें मुसलसल ये जंग जारी है,

ख़ुद अपने जिस्म पे अपनी ही रूह भारी है !

समेट लेता है नदियों के अश्क सीने में ,

इसीलिए तो समंदर की बूंद खारी है !

आपकी जेब में बस उसूल के सिक्के ।

बेटियों के दहेज़ की जबाबदारी है !

कशिश ग़ज़ल में जो उभरी है उसका राज ये है ,

बयान सबका है यारो कलम हमारी है !

डॉ.ब्रजेश शर्मा

Comments

pallavi trivedi said…
समेट लेता है नदियों के अश्क सीने में ,
इसीलिए तो समंदर की बूंद खारी है

waah...ye sher bahut pasand aaya.

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