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Showing posts from May 1, 2008
कहीं भी जायें मुसलसल ये जंग जारी है, ख़ुद अपने जिस्म पे अपनी ही रूह भारी है ! समेट लेता है नदियों के अश्क सीने में , इसीलिए तो समंदर की बूंद खारी है ! आपकी जेब में बस उसूल के सिक्के । बेटियों के दहेज़ की जबाबदारी है ! कशिश ग़ज़ल में जो उभरी है उसका राज ये है , बयान सबका है यारो कलम हमारी है ! डॉ.ब्रजेश शर्मा