ग़ज़ल

निगाहें हक़ में तो मासूम को ही माफ़ी है ,

सजा कबूल करो तुम अगर खता की है !

तमाम तोहमतें उसने हमारे सर कर दीं ,

हमारी सिम्त से ऐलाने जंग बाकी है !

कितना मुश्किल है तसव्वुर का तर्जुमा करना ,

बड़ा है काम मगर ज़िन्दगी जरा सी है !

चाँद को छूने की कोशिश हर एक लहर में है ,

हमें पता है समंदर की रूह प्यासी है !

ठहर भी जाओ मोहब्बत के इस जज़ीरे पर ,

कितनी हसरत से तुम्हे ज़िन्दगी बुलाती है !

डॉ॰ ब्रजेश शर्मा

Comments

"ठहर भी जाओ मोहब्बत के इस जज़ीरे पर ,

कितनी हसरत से तुम्हे ज़िन्दगी बुलाती है !"


वाह , बहुत अच्छी लिखी है आपने .

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