बड़ी मुश्किल है यारो ज़हनियत भी ,
नहीं मिल पाते अपने आप से भी ,
अजब ये दौर है सब खौफ में हैं ,
कली और फूल क्या पिस्तोल तक भी !
वो एक चेहरा जो मेरे ख्वाब में है ,
कभी आएगा आख़िर सामने भी !
चलोगे जब मोहब्बत के सफ़र पर ,
तुम्हें अपना लगेगा अजनबी भी !
हुनर अहसास पर हावी हुआ ग़र ,
तो फिर दम तोड़ देगी शायरी भी !
डॉ.ब्रजेश शर्मा

Comments

Aarti sirjan said…
vah vah...kya baat hai Brijesh ji.
shandaar gazal....badhai

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