तमाम तोहमतें दुनियां कि वो उठाएगा ,
अजब दीवाना है अपनी ही बात मानेगा !
तेरी वफ़ा ये तेरा ऐतबार , तेरा खुलूस ,
गुनाह से तो यक़ीनन मुझे बचा लेगा !
मेरे तमाम गुनाहों का चश्मदीद गवाह ,
मेरा ज़मीर ही मुंसिफ है , फैसला देगा !
मेरा मिजाज़ फ़कत उलझनों का मेला है ,
वो मुझ से रब्त बढ़ाकर भी और क्या लेगा !
रूह अल्फाज़ की मेरे बयान में झलके ,
मेरी ज़ुबान में कब ये शऊर आएगा !
डॉ. ब्रजेश शर्मा

Comments

pallavi trivedi said…
मेरे तमाम गुनाहों का चश्मदीद गवाह ,
मेरा ज़मीर ही मुंसिफ है , फैसला देगा

ye sher khaas taur par pasand aaya. lekin is baar aapke sheron mein kaafiya ek jaisa nahi rakha aapne.
मेरे तमाम गुनाहों का चश्मदीद गवाह ,
मेरा ज़मीर ही मुंसिफ है , फैसला देगा !
kya bat hai ....

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