ऐसा क्यूँकर लगता है ,
बिला वज़ह डर लगता है !
इश्क में आँखें छलकें तो ,
अश्क समंदर लगता है !
उलझन का तानाबाना ,
बस अपना घर लगता है !
उसने दर्द कुबूल लिए ,
मस्त कलंदर लगता है !
डॉ ब्रजेश शर्मा

Comments

Popular posts from this blog

ग़ज़ल

ग़ज़ल