दिल से अह्सासे ग़म मिटा तो नहीं ,
ज़िंदगी ग़म का सिलसिला तो नहीं ?
कह रहे हो बहार आयी है ?
एक भी गुल मगर खिला तो नहीं !
चलते चलते थके कदम फिर भी ,
मंज़िलों का पता मिला तो नहीं !
ज़ुल्मतों का वज़ूद क़ायम है ,
बेसबब ही ये दिल जला तो नहीं !
कुछ तो अपना भी हक़ है गुलशन पर ,
फिक्रे गुलशन कोई खता तो नहीं ?
बुलबुलें किसलिए क़फ़स में हैं ?
चहचहाने की ये सज़ा तो नहीं ?
डॉ . ब्रजेश शर्मा

Comments

pallavi trivedi said…
waah waah...bahut umda.poori ghazal bahut pasand aayi.

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