रोज़ चहरे बदलते हुये ,
जी रहे खुद को छलते हुये !
कितने जलते हुये प्रश्न हैं ,
भीगी आंखों में पलते हुये !
खो गए पांव अपने कहीँ ,
भीड़ के साथ चलते हुये !
डॉ .ब्रजेश शर्मा

Comments

Sonal said…
Namaste Uncle, bahut hi shaandar likhte hai aap. jitni bar pado, anand aa jata hai. Too good!!! Kuchh naya upload kijiye na....

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