ग़ज़ल

जो पाया है वो जीना चाहता हूँ ,
बहुत खामोश रहना चाहता हूँ !
तबर्रुक बाँट देना चाहता हूँ ,
ग़ज़ल के शेर कहना चाहता हूँ !
में अपनी रूह से होकर मुखातिब ,
अना के पार जाना चाहता हूँ !
हुई हैं चार आँखें ज़िन्दगी से ,
में अब हद से गुजरना चाहता हूँ !
फकीरी घुल रही है आशिकी में ,
करीने से संवरना चाहता हूँ !
डॉ॰ ब्रजेश शर्मा

Comments

जो पाया है वो जीना चाहता हूँ ........अप्राप्ति की ललक प्राप्ति का आनंद नहीं लेने देती ,खूबसूरत भाव,सुंदर अभिव्यक्ति !बधाई ! " फकीरी घुल रही है आशिकी में .........." बहुत खूब !
This comment has been removed by the author.
फकीरी घुल रही है आशिकी में ,
करीने से संवरना चाहता हूँ !

वाह क्या बात है? अच्छे भाव की पंक्तियाँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Udan Tashtari said…
हुई हैं चार आँखें ज़िन्दगी से ,
में अब हद से गुजरना चाहता हूँ !

-बहुत सही!!
में अपनी रूह से होकर मुखातिब ,
अना के पार जाना चाहता हूँ !

ग़ज़ब....क्या बात है...
हया
हुई हैं चार आँखें ज़िन्दगी से ,
में अब हद से गुजरना चाहता हूँ !
फकीरी घुल रही है आशिकी में ,
करीने से संवरना चाहता हूँ !


बहुत खूब.... !
Unknown said…
सुन्दर शब्द रचना..
http://savanxxx.blogspot.in
Unknown said…
अद्‍भुत सर

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