ग़ज़ल
जो पाया है वो जीना चाहता हूँ , बहुत खामोश रहना चाहता हूँ ! तबर्रुक बाँट देना चाहता हूँ , ग़ज़ल के शेर कहना चाहता हूँ ! में अपनी रूह से होकर मुखातिब , अना के पार जाना चाहता हूँ ! हुई हैं चार आँखें ज़िन्दगी से , में अब हद से गुजरना चाहता हूँ ! फकीरी घुल रही है आशिकी में , करीने से संवरना चाहता हूँ ! डॉ॰ ब्रजेश शर्मा