तमाम तोहमतें दुनियां कि वो उठाएगा , अजब दीवाना है अपनी ही बात मानेगा ! तेरी वफ़ा ये तेरा ऐतबार , तेरा खुलूस , गुनाह से तो यक़ीनन मुझे बचा लेगा ! मेरे तमाम गुनाहों का चश्मदीद गवाह , मेरा ज़मीर ही मुंसिफ है , फैसला देगा ! मेरा मिजाज़ फ़कत उलझनों का मेला है , वो मुझ से रब्त बढ़ाकर भी और क्या लेगा ! रूह अल्फाज़ की मेरे बयान में झलके , मेरी ज़ुबान में कब ये शऊर आएगा ! डॉ. ब्रजेश शर्मा
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Showing posts from April 22, 2008
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इक दूसरे की झूठी क़सम खा रहे हैं लोग , क्या खुश नुमां फरेब जिए जा रहे हैं लोग ! क्या खूब लोग थे जो महकते हैं आज भी , अब तो बशक्ले खार नज़र आ रहे हैं लोग ! तनहा जो तूने अपना सफर तय किया तो क्या ? तेरे नक्शे पा पे आज चले जा रहे हैं लोग ! खामोशियों को शोर निगलने लगा है अब , आवाज़ फ़िर बुलंद किए जा रहे हैं लोग ! पहले तो दरीचों से लगे झांकते रहे , अब अपनी हर्क़तों पे ख़ुद शर्मा रहे हैं लोग ! जब टूट ही गया है गमे यार का तिलिस्म , फिर क्यों गमे हयात से घबरा रहे हैं लोग ! डॉ . ब्रजेश शर्मा
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दिल से अह्सासे ग़म मिटा तो नहीं , ज़िंदगी ग़म का सिलसिला तो नहीं ? कह रहे हो बहार आयी है ? एक भी गुल मगर खिला तो नहीं ! चलते चलते थके कदम फिर भी , मंज़िलों का पता मिला तो नहीं ! ज़ुल्मतों का वज़ूद क़ायम है , बेसबब ही ये दिल जला तो नहीं ! कुछ तो अपना भी हक़ है गुलशन पर , फिक्रे गुलशन कोई खता तो नहीं ? बुलबुलें किसलिए क़फ़स में हैं ? चहचहाने की ये सज़ा तो नहीं ? डॉ . ब्रजेश शर्मा