इक दूसरे की झूठी क़सम खा रहे हैं लोग ,
क्या खुश नुमां फरेब जिए जा रहे हैं लोग !
क्या खूब लोग थे जो महकते हैं आज भी ,
अब तो बशक्ले खार नज़र आ रहे हैं लोग !
तनहा जो तूने अपना सफर तय किया तो क्या ?
तेरे नक्शे पा पे आज चले जा रहे हैं लोग !
खामोशियों को शोर निगलने लगा है अब ,
आवाज़ फ़िर बुलंद किए जा रहे हैं लोग !
पहले तो दरीचों से लगे झांकते रहे ,
अब अपनी हर्क़तों पे ख़ुद शर्मा रहे हैं लोग !
जब टूट ही गया है गमे यार का तिलिस्म ,
फिर क्यों गमे हयात से घबरा रहे हैं लोग !
डॉ . ब्रजेश शर्मा
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